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वैसे पहले पुरुषों को समाज में औरतों से काफी ऊँचा दर्जा दिया जाता था पर इसके बावजूद भी कुछ महिलाओं ने इन सब बेड़ियों को तोड़कर राष्ट्र के लिए अपना योगदान दिया। समय-समय पर महिलायें बुद्धि का इस्तेमाल करके पुरुषों से आगे निकलने में कामयाब हो गयीं। आज महिलायें हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। ऐसी बहुत सी महिलायें जैसे मदर टेरेसा, किरण बेदी, सरोजिनी नायडू, कल्पना चावला आदि ने अभूतपूर्व कार्य करके देश और दुनिया में अपना नाम रोशन किया है और साथ ही सबके लिए प्रेरणास्रोत भी बनी हैं। #Thinkwithniche
वैसे तो पहले हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज था लेकिन फिर भी कई महिलाओं ने इन सबसे ऊपर उठकर नाम कमाया है। आज वो महिलायें हर इंसान के लिए प्रेरणास्रोत हैं। अगर एक औरत चाहे तो सब कुछ कर सकती है। उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। भारत की एक नहीं बल्कि ऐसी अनगिनत महिलायें हैं जिन्होंने अपने कार्य और योगदान से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे संसार में अपना लोहा मनवाया है। आज महिलायें हर क्षेत्र में आगे हैं। ऐसी ही कुछ महिलायें हैं जिन्होंने अपने कार्यों के दम पर नाम रोशन किया है।
किरण बेदी
किरण बेदी किसी परिचय की मोहताज नहीं है। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो उनको न जानता हो। वह एक कुशल राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। किरण बेदी का कहना है “सब कुछ संभव है, कुछ भी असंभव नहीं है, किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए सिर्फ कोशिश करने की जरूरत है।” शायद उनके इसी तरह के महान विचारों और जज्बे से ही उन्हें देश की पहली महिला आईपीएस होने का गौरव हासिल हुआ है। वे संयुक्त राष्ट्र पीसकीपिंग ऑपरेशन्स से भी जुड़ी रहीं और इसके लिए उन्हें मेडल भी दिया गया था। उन्हें क्रेन बेदी के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें जेल प्रशासन में महत्वपूर्ण सुधार करने के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने कैदियों के कल्याण के लिए तिहाड़ जेल में बहुत सारे सुधार किए जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें रमन मेगसेसे पुरस्कार के साथ साथ जवाहर लाल नेहरू फेलोशिप भी मिली थी। जेल सुधारों के लिए उन्हें 2005 में मानद डॉक्ट्रेक्ट भी प्रदान की गई थी। 9 साल की उम्र से ही किरण बेदी ने अपने पिता से प्रेरित होकर टेनिस खेलना शुरु कर दिया था। साल 1964 से किरण बेदी ने टेनिस प्लेयर के रुप मे अपने करियर की शुरुआत की थी।1966 में किरण बेदी जूनियर नेशनल लॉन टेनिस चैम्पियनशिप जीता था। 1968 में किरण बेदी ने ऑल इंडिया इंटरवेर्सिटी टेनिस टाइटल का खिताब जीता। किरण बेदी ने आईपीएस, राजनेता और समाजसेवा के तौर पर ही खुद को साबित नहीं किया, बल्कि उनके अंदर लेखक के भी गुण हैं। उन्होंने आई डेयर (I Dare), क्रिएटिंग लीडरशिप, इट्स ऑलवेज पॉसिबल, जैसी कई किताबें लिखी हैं।
मदर टेरेसा
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमेशा दूसरों के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा भी एक ऐसी ही महान आत्मा थी। मदर टेरेसा के भारतीय न होते हुए भी उन्होंने हमारे देश को बहुत कुछ दिया है। उनका कार्य हर किसी के लिए एक मिसाल की तरह है। उनका जन्म मेसेडोनिया में 26 अगस्त 1910 में अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से हुआ था। 18 वर्ष की उम्र में वो कोलकाता आयी थीं और गरीब लोगों की सेवा करने के अपने जीवन के मिशन को जारी रखा। वे एक ऐसी कली थीं जिन्होंने गरीबों और दीन-दुखियों की ज़िन्दगी में प्यार की खुशबू भरी। मानवता की जीती-जागती मिसाल थीं मदर टेरेसा। वो एक ऐसी महिला थी जिन्होंने उनके जीवन में असंभव कार्य करने के लिये बहुत सारे लोगों को प्रेरित किया है। वो हमेशा हम सभी के लिये प्रेरणास्रोत रहेंगी। जीवन में मिली उपलब्धियों के बाद विश्व उन्हें एक नये नाम मदर टेरेसा के रूप में जानने लगा। महान मनावता लिये हुए ये दुनिया अच्छे लोगों से भरी हुयी है लेकिन हर एक को आगे बढ़ने के लिये एक प्रेरणा की ज़रूरत होती है। उन्होंने एक माँ की तरह अपना सारा जीवन गरीब और बीमार लोगों की सेवा में लगा दिया। एक साधारण नीले बाडर्र वाली सफेद साड़ी को पहनने के लिये को उन्होंने चुना। वो हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी क्योंकि वो एक सच्ची माँ की तरह थीं।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू को भारत की कोकिला भी कहा जाता है। वह देश की प्रथम महिला राज्यपाल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनी थीं। साथ ही वह एक महान कवयित्री स्वतंत्रता सेनानी और एक प्रसिद्ध वक्ता भी थीं। वह भारत की एक महान क्रांतिकारी महिला और महान राजनीतिज्ञ भी थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत योगदान दिया था। बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि होने के कारण उन्होंने 12 वर्ष की अल्पायु में ही 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और 13 वर्ष की आयु में लेडी ऑफ दी लेक नामक कविता रची। भारत में महिला सशक्तिकरण और महिला अधिकार के लिए भी उन्होंने आवाज उठायी। सरोजिनी ने गांव और शहर की औरतों में देशप्रेम का जज्बा जगाया और स्वतंत्रता संग्राम में उन्हें भी हिस्सा लेने के लिये प्रोत्साहित किया। सरोजिनी जी बच्चों के लिये भी बहुत कविताएँ लिखती थीं।अत्यंत मधुर आवाज में अपनी कविता का पाठ करने की वजह से उन्हें भारत कोकिला भी कहा गया।सरोजिनी नायडू ने सविनय अवज्ञा आंदोलन, सत्याग्रह आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। सरोजिनी नायडू का नाम भारतीय इतिहास में सदैव याद रखा जायेगा।
कल्पना चावला
कल्पना चावला भारतीय मूल की अमरीकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थीं। वह अंतरिक्ष में जाने वाली द्वितीय भारतीय और प्रथम भारतीय महिला थीं। कल्पना ‘कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा’ में मारे गए सात अंतरिक्ष यात्री दल सदस्यों में से एक थीं। दुनिया भर की महिलाओं के लिए बल्कि अंतरिक्ष यात्री बनने की इच्छा रखने वाले सभी लोगों के लिए एक आदर्श हैं। वह एक बार नहीं बल्कि दो बार अंतरिक्ष में जाने वाली भारत में जन्मी पहली महिला थीं। कल्पना चावला ने एक मिशन स्पेशलिस्ट और प्राइमरी रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में पहली बार 1997 में आउटर स्पेश के लिए उड़ान भरी थी। कल्पना की प्रथम अंतरिक्ष उड़ान एस.टी.एस. 87 कोलम्बिया शटल से 19 नवम्बर 1997 से 5 दिसम्बर 1997 के मध्य सम्पन्न हुई। उनकी दूसरी और आखिरी उड़ान 16 जनवरी 2003 को स्पेस शटल कोलम्बिया से शुरू हुई पर दुर्भाग्यवश 1 फरवरी 2003 को कोल्म्बिया स्पेस शटल पृथ्वी पर लैंड करने से पहले ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमे कल्पना चावला समेत अंतरिक्ष यान के सभी 6 यात्री मारे गए। नासा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी। एक छोटे से शहर में पली-बढ़ी कल्पना चावला मजबूत स्वभाव की थीं, कोई ऐसी चीज नहीं थी जो उन्हें डरा सकती थी।
बछेंद्री पाल
भारत की बछेंद्री पाल संसार की सबसे ऊंची चोटी ‘माउंट एवरेस्ट’ पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला हैं। बछेंद्री पाल संसार के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर ‘माउंट एवरेस्ट’ की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की 5वीं महिला पर्वतारोही हैं। बछेंद्री पाल ने वर्ष 1984 के एवरेस्ट पर्वतारोहण अभियान में पुरुष पर्वतारोहियों के साथ शामिल होकर एवं सफलता पूर्वक संसार की सबसे ऊंची चोटी ‘माउंट एवरेस्ट’ पर पहुंचकर भारत का राष्ट्रीय ध्वज लहराया और एवरेस्ट पर विजय पाई। उनकी इस सफलता ने आगे भारत की अन्य महिलाओं को भी पर्वतारोहण जैसे साहसिक अभियान में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। बछेंद्री पाल का जन्म उत्तराखंड के नाकुरी नाम के गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्हें माउंटेनिरिंग के प्रति आकर्षण पैदा हो गया था। वह इतनी ठोस महिला थीं कि बर्फ में लिपटे जाने के बाद भी उनके एवरेस्ट फतह के इरादे खत्म नहीं हुए। ये भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता हैं तथा देश-विदेश की महिला पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा की श्रोत भी हैं। बछेंद्री पाल ने कई आपदाओं में राहत और बचाव कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन द्वारा पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए वर्ष 1984 में स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। भारत सरकार के द्वारा इन्हें वर्ष 1994 में ‘नेशनल एडवेंचर अवार्ड’ प्रदान किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 1995 में इनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए ‘यश भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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