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भारत India के पास भी कई देशों से प्रेरित स्वयं द्वारा रचित एक संविधान है, जिसने देश के लिए नीतियों regulations का निर्माण किया। जो किसी भी कानून की आधारशिला होता है, जिसे देश में किसी भी परिस्थिति में नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है तथा न ही नकारा नहीं जा सकता है। विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान का निर्माण जिस व्यक्तित्व के नेतृत्व ने किया उनके जीवन की गाथा हर एक इंसान के लिए एक प्रेरणा है।बाबा बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेटकर के परिनिर्वाण दिवस पर Think with Niche की श्रद्धांजलि स्वरुप यह लेख प्रस्तुत है। #Thinkwithniche
प्रत्येक देश को चलाने के लिए एक व्यवस्था की आवश्यकता होती है। कुछ देश लोकतांत्रिक Democratic तरीके से चलते हैं तो कुछ में आज भी एकल सत्ता का राज होता है। परन्तु यदि एक व्यवस्थित समाज की बात करें तो यह वही माना जाता है, जहां पर उस वातावरण में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा को एक-समान प्राथमिकता दी जाती है। यह व्यवस्था लोकतंत्र Democracy के माध्यम से ही संभव हो पाती है। परन्तु जो देश इस प्रक्रिया से चलते हैं, वहां पर भी लोगों को कुछ नियमों और समाज के प्रति दायित्व के आधार पर ही रहना और कार्य करना होता है। यह आधारशिला कुछ नेतृत्वकर्ताओं द्वारा तैयार की जाती है। अनेक देशों में यह कई वर्षों से चले आ रहे हैं, जो समय की आवश्यकतानुसार परिवर्तित भी किए जाते हैं, जिसे हम ‘संविधान Constitution‘ कहते हैं। भारत India के पास भी कई देशों से प्रेरित स्वयं द्वारा रचित एक संविधान है, जिसने देश के लिए नीतियों regulations का निर्माण किया। जो किसी भी कानून की आधारशिला होता है, जिसे देश में किसी भी परिस्थिति में नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है तथा न ही नकारा नहीं जा सकता है। विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान का निर्माण जिस व्यक्तित्व के नेतृत्व ने किया उनके जीवन की गाथा हर एक इंसान के लिए एक प्रेरणा है।
भारतीय संविधान Indian constitution का मूल रचनाकार डॉ भीमराव भीमराव अम्बेडकर को माना जाता है, जिन्हें लोग सम्मान में बाबा साहेब भी कहते हैं। इस समाज सुधारक और महान अर्थशास्त्री Economist ने भारत को एक ऐसा संविधान दिया, जिसमें प्रत्येक वर्ग के लोगों के ऊपर ध्यान दिया गया है। जिसमें प्रत्येक नागरिक के लिए समान अवसर और न्याय प्रदान किया गया हैं। एक ऐसे देश के लिए संविधान का निर्माण करना जहां पर ऊंच-नीच, अमीर-गरीब तथा छुआ-छूत की एक गहरी खाई मौजूद हो, वहां प्रत्येक वर्ग के आगे बढ़ने और सम्पन्न होने की क्षमता पैदा करना हो, अवश्य ही आसान नहीं रहा होगा, परन्तु डॉ भीमराव अम्बेडकर ने इस व्यवस्था के निर्माण को सफल कर दिखाया।
भीमराव अम्बेडकर Bhimrao Ambedkar का जन्म 1851 में हुआ था और आज़ादी के छठें वर्ष 1956 में उनका निधन हो गया था। अम्बेडकर जी की जन्मस्थली आज उनके नाम से जानी जाती है।
बाबा साहेब ने समाज में उपस्थित कुरीतियों ऊंच-नीच के भाव का खुल कर विरोध किया तथा ऐसे लोगों को भी समाज में सम्मान और हक़ दिलाया, जिन्हें अछूत समझा जाता है। अम्बेडकर जी ने अपने बचपन से ही इस तिरस्कार को झेला था, वो जिस वर्ग से आते थे वे लोग उस समय में शिक्षा ग्रहण करने के पात्र नहीं माने जाते थे । जब भीमराव पढ़ाई करने के लिए विद्यालय गए तो इन्हें कक्षा के बाहर ही बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती थी। यहां तक कि वे उस बर्तन को छू भी नहीं सकते थे, जिससे अन्य बच्चे पानी पीते थे।
इतनी समस्याओं के बावजूद अंबेडकर जी ने अपनी पढ़ाई को निरंतर जारी रखा तथा विदेश जाकर भी उच्च शिक्षा को ग्रहण किया। दो अलग-अलग विदेशी विश्वविद्यालयों से बाबा साहेब ने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट doctrate की उपाधि प्राप्त की। बाबा साहेब एक कुशल विधिवेत्ता Jurist भी थे। भारत के आज़ाद होने के बाद प्रथम मंत्रीमंडल में इन्होंने क़ानून तथा न्यायमंत्री justice minister के रूप में भी कार्य किया। इनकी बदौलत ही उन वर्गों को आगे बढ़ने तथा कुछ करने का अवसर मिला जिन्हें निम्न वर्ग की श्रेणी में रखा गया था। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर स्वयं भारत देश की आधारशिला थे और हैं।
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